Friday, 15 December 2017

ए जिंदगी

समझ न आया, ए जिंदगी
तेरा ये फ़लसफ़ा
कभी तेरी ही रुह हो जाती,
है तुझसे खफ़ा ।
पर फिर जब कभी उठे है तुझपे सवाल
तब क्यों उठे है उस रूह में बवाल?

न जाने कैसी है,ये तेरी लीला
जो वक़्त बेवक़्त उस रूह को बस,
कश्मकश है मिला ।
समझ न आया अब भी, जिंदगी
 तेरा ये फ़लसफ़ा ।।

ए जिंदगी, एक सुकून की तलाश थी
जिसने न जाने कितनी बेचैनियां थी पल ली
पर अब उस रूह ने अपनी बिखरती,
 ज़िन्दगी भी संभाल ली ।
क्योंकि, कभी तलाश थी जिस सुकून की
वो बनी अब है एक जूनून सी ।

समझ आज भी न आया, ए जिंदगी
 तेरा ये फ़लसफ़ा
कभी जो कहती थी, "समय आज तक किसीका न हुआ"
आज कहती है, "दो पल रुक जा ज़रा, मिलेगा वो जो तूने कभी है बुआ"

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