Tuesday, 26 December 2017

किस्से ज़िन्दगी के

ज़िन्दगी हमारी यूं सितम हो गई
ख़ुशी न जाने कहाँ दफ़न होगई
थे जो पल कभी सुहाने, लगते है अब
 वो बस मेरे ख्वाबो के ।
अब तो किसी भी बात पे ऐतबार नही होता
क्योंकि हकीकत में कभी,
ख़ुशी का दीदार नही होता और
इन होठो को अब किसी हँसी का
इंतज़ार नही होता ।

ढल जाते है अश्क़, एक और गम की राह लिए..
दर जाता है ये दिल आज, एक और अरमानों की चाह लिए ।
जाने क्यों हर ख़ुशी अब लगे नमी थी
शायद उन पलों में अपनों के अपनेपन की कमी थी ।

सपनों से है ये ज़िन्दगी
जिसमे ख्वाब कुछ मेरे भी थे, और
ख़ुशी के कुछ पल, अभी बुनने भी थे ।
पर ज़िन्दगी हमारी यूँ सितम हो गई
की ख़ुशी न जाने कहाँ दफ़न हो गई ।
न जाने कहाँ है वो रस्ते ज़िन्दगी के ?
एक सफर जो मेरी राह तक ले जाए
और जाने कहाँ है वो रिश्ते ज़िन्दगी के,
जो मेरी खोई रूह वापस ले आए ।

ज़िन्दगी की इस राह में देखे है
बदलते किस्से कई
और देखे है, सपनो के बिखरते हिस्से कई ।
रस्ते उन सपनो तक इतने मुश्किल न थे
पर चुभे कुछ कांटे, जिन्हें अपनों ने ही बुने थे ।
 ए ज़िन्दगी क्या है ये?
उन सपनो की किस्मत, या
अपनों की हकीकत ?

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